दमोह जिला मुख्यालय से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर नोहटा ग्राम में नोहलेश्वर शिव मंदिर स्थित है.जहां भगवान शिव विराजमान है इसकी गिनती बुंदेलखंड के सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण मंदिरों में होती है। दमोह जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर नोहटा में ऐतिहासिक नोहलेश्वर शिव मंदिर है, जो पुरातत्व विभाग के अधीन है।
दमोह जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर नोहटा में ऐतिहासिक नोहलेश्वर शिव मंदिर है, जो पुरातत्व विभाग के अधीन है। मंदिर का निर्माण कल्चुरी नरेश युवराज प्रथम ने अपनी प्रिय रानी नोहला के नाम पर कराया था। युवराज धर्मावलंबी थे, उन्होंने अपने शासन काल 915 से 945 ई. के बीच इस अद्वितीय मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर की खासियत यह है कि यह मुस्लिम आक्रांताओं के हमलों से यह सुरक्षित रहा।
मन्दिर के चारों ओर खजुराहो की तरह पत्थरों पर नक्काशी नजर आती है.ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण चंदेल वंश के राजाओं ने करवाया था.
वैसे तो दमोह जिले की जबेरा तहसील इतिहास के दो प्रमुख कालखंडों के चिन्ह उल्लेख करती है.प्राचीनकाल से चिमटे चढ़ाये जाने की परम्परासन 1892– 94 में हेनरी कूसेस नामक इतिहासकार नोहटा ग्राम के शिव मंदिर को प्रकाश में लाए.जिसका नामकरण रानी नोहला के नाम पर हुआ था. यह शिव मंदिर पत्थर के चबूतरे पर बना हुआ है, जो भारतीय स्थापत्यकला के श्रेष्ठ उदाहरणों में एक है.इस शिव मंदिर में प्राचीनकाल से चिमटे चढ़ाये जाने की परम्परा चली आ रही है. जहां आज भी चिमटे चढ़ाए जाते हैं.
100 फीट लंबे चौड़े चबूतरे पर बना है मंदिर
यह मंदिर दमोह जबलपुर स्टेट हाईवे पर मुख्य सड़क के किनारे स्थित है। मंदिर का निर्माण 100 फीट लंबाई चौड़ाई वाले छह फीट ऊंचे चबूतरे पर किया गया है। मंदिर का प्रवेश द्वार पांच शाखाओं में विभक्त है । मंदिर के चार मुख्य स्तंभ हैं । इस मंदिर के गर्भगृह का शिखर अत्यंत अलंकृत है, जिसमें शिवलिंग स्थापित है। मंदिर का शिल्प बहुत कुछ खजुराहो के मंदिरों जैसा है।
आस्था व शिल्प कला का अद्भुत संगम
ग्राम नोहटा में बने नवमीं शताब्दी (950-60) का कल्चुरी कालीन प्राचीन शिव मंदिर की सुदंरता देखते ही बनती है। यह मंदिर आस्था व शिल्प कला का अदभुत संगम हैं।
अति प्राचीन शिवलिंग है विराजमान
वैसे तो वर्ष भर यहां लोगों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन सावन माह में लोगों की भारी भीड़ लगती है और पूरे प्रदेश से श्रद्धालु इस पुरातत्व महत्व के मंदिर को देखने आते हैं।
दमोह जिला मुख्यालय से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर नोहटा ग्राम में नोहलेश्वर शिव मंदिर स्थित है.जहां भगवान शिव विराजमान है इसकी गिनती बुंदेलखंड के सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण मंदिरों में होती है। दमोह जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर नोहटा में ऐतिहासिक नोहलेश्वर शिव मंदिर है, जो पुरातत्व विभाग के अधीन है।
दमोह जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर नोहटा में ऐतिहासिक नोहलेश्वर शिव मंदिर है, जो पुरातत्व विभाग के अधीन है। मंदिर का निर्माण कल्चुरी नरेश युवराज प्रथम ने अपनी प्रिय रानी नोहला के नाम पर कराया था। युवराज धर्मावलंबी थे, उन्होंने अपने शासन काल 915 से 945 ई. के बीच इस अद्वितीय मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर की खासियत यह है कि यह मुस्लिम आक्रांताओं के हमलों से यह सुरक्षित रहा।
मन्दिर के चारों ओर खजुराहो की तरह पत्थरों पर नक्काशी नजर आती है.ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण चंदेल वंश के राजाओं ने करवाया था.
वैसे तो दमोह जिले की जबेरा तहसील इतिहास के दो प्रमुख कालखंडों के चिन्ह उल्लेख करती है.प्राचीनकाल से चिमटे चढ़ाये जाने की परम्परासन 1892– 94 में हेनरी कूसेस नामक इतिहासकार नोहटा ग्राम के शिव मंदिर को प्रकाश में लाए.जिसका नामकरण रानी नोहला के नाम पर हुआ था. यह शिव मंदिर पत्थर के चबूतरे पर बना हुआ है, जो भारतीय स्थापत्यकला के श्रेष्ठ उदाहरणों में एक है.इस शिव मंदिर में प्राचीनकाल से चिमटे चढ़ाये जाने की परम्परा चली आ रही है. जहां आज भी चिमटे चढ़ाए जाते हैं.
100 फीट लंबे चौड़े चबूतरे पर बना है मंदिर
यह मंदिर दमोह जबलपुर स्टेट हाईवे पर मुख्य सड़क के किनारे स्थित है। मंदिर का निर्माण 100 फीट लंबाई चौड़ाई वाले छह फीट ऊंचे चबूतरे पर किया गया है। मंदिर का प्रवेश द्वार पांच शाखाओं में विभक्त है । मंदिर के चार मुख्य स्तंभ हैं । इस मंदिर के गर्भगृह का शिखर अत्यंत अलंकृत है, जिसमें शिवलिंग स्थापित है। मंदिर का शिल्प बहुत कुछ खजुराहो के मंदिरों जैसा है।
मंदिर में एक पंचरथ गर्भगृह है जिसके ऊपर एक बहुत ही अलंकृत शिखर है । मंडप में चार स्तंभ हैं जो अपेक्षाकृत सरल डिजाइन के हैं और रंग मंडप की ओर ले जाते हैं । दिलचस्प बात यह है कि दाईं ओर एक भव्य नर्मदा है (आमतौर पर गंगा दाईं ओर विराजमान होती हैं) जबकि यमुना बाईं ओर है। देवी लक्ष्मी के आठ रूप सामने के निचले मंच को सुशोभित करते हैं, जिनमें गजलक्ष्मी सबसे आकर्षक है। मंदिर के कई हिस्सों में सप्त मातृकाएँ उकेरी गई हैं।
नवग्रहों को ललता बिम्ब के शीर्ष भाग पर रखा गया है , जिसके मध्य में भगवान शिव हैं। गर्भगृह में काले पत्थर से बना एक विशाल शिव लिंग स्थापित है। गर्भगृह के अंदर लगभग 109 मूर्तियाँ हैं जो बहुत प्राचीन हैं।
आस्था व शिल्प कला का अद्भुत संगम
ग्राम नोहटा में बने नवमीं शताब्दी (950-60) का कल्चुरी कालीन प्राचीन शिव मंदिर की सुदंरता देखते ही बनती है। यह मंदिर आस्था व शिल्प कला का अदभुत संगम हैं।
अति प्राचीन शिवलिंग है विराजमान
वैसे तो वर्ष भर यहां लोगों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन सावन माह में लोगों की भारी भीड़ लगती है और पूरे प्रदेश से श्रद्धालु इस पुरातत्व महत्व के मंदिर को देखने आते हैं।
Shaded in the Panna district of Madhya Pradesh, the Pandav Falls grace the banks of Ken River and reign at a height of around 30 meters. Named after the Pandava brothers from the Indian Epic Mahabharata who are believed to have been there, the area is loaded with natural gems.